Kavi Roopchandji / Pandit Roopchand Pandey
कवि रूपचंद जी या पंडित रूपचंद पांडेय
हिंदी भाषा के कवियों में पंडित रूपचंद जी या पांडेय रूपचंद एक ही व्यक्ति हैं। यह महाकवि पंडित बनारसीदास जी के गुरु हैं। पंडित बनारसीदास जी ने रूपचंद जी का परिचय प्रस्तुत करते हुए बताया है कि इनका जन्म कोई देश में स्थित सलेमपुर था और इनका जन्म 1643 में गर्ग गोत्रीय अग्रवाल कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम भगवानदास था और भट्टारकीय पंडित होने के कारण जन्म से ही इन्हें पांडेय की उपाधि प्राप्त थी। पंडित रूपचंद जी पांडेय जैन सिद्धांतों के मर्मज्ञ विद्वान थे और इन्होंने बनारस में रहकर अध्ययन किया। सन 1694 में पांडेय रूपचंद जी की देहावसान हो गया। इनके द्वारा लिखित रचनाओं में सहज स्वाभाविकता पाई जाती है।
1. परमार्थ दोहा शतक या दोहा परमार्थ - यह 101 दोहों का संग्रह है। सभी दोहे अध्यात्म विषयक हैं। इसमें कवि ने विषयों की अनित्यता, क्षणभंगुरता, असारता का सजीव चित्रण किया है। साथ ही आत्मा के वास्तविक स्वरूप का वर्णन किया है।
2. गीत परमार्थी अथवा परमार्थ गीत - यह छोटी सी कृति है इसमें 16 पद हैं और जीव को संबोधन कर उसे स्वरूप में गुप्त होने की प्रेरणा दी गई है।
3. अध्यात्म सवैया - इसमें 101 कविता और सवैया छंद है। इसमें संसार की क्षणभंगुरता, मिथ्यात्व को दूर करने की प्रेरणा, उत्पाद व्ययात्मक आत्मा आदि का वर्णन किया गया है।
4. खटोलाना गीत - यह भी छोटी सी कृति है। इसमें कुल 13 पद हैं।
5. स्फुट पद - इसके सभी पद भक्ति रस से परिपूर्ण है। जिसमें भगवान जिनेंद्र देव की स्तुति की गई है।
6. पंच मंगल या मंगल गीत प्रबंध - इस रचना में कवि ने तीर्थंकर के पंचकल्याणकों की घटनाओं को काव्य रूप में निबद्ध किया है।